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महाब्लॉग

फाकामस्ती
फाकामस्ती
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जब देश का सबसे बड़ा मीडिया हाउस कोई काम करेगा तो वह ‘महा’ तो होगा ही। कहने को कहा जा सकता है कि ब्लॉगों की भीड़ में भला एक और ब्लॉग का क्या काम? लेकिन काम है, और बहुत बड़ा काम। अब यह समझाना तो बेहद बचकाना होगा कि ब्लॉग वैकल्पिक मीडिया का नया तेजी से उभरता हुआ स्वरूप है। पढ़ने-लिखने वाला तबका तो अब इस बात को जानता ही है। असली मसला यह है कि क्या भारत में ब्लॉग का मौजूदा स्वरूप, खास तौर पर हिंदी ब्लॉगिंग का मौजूदा स्वरूप कोई मकसद हासिल कर पाया है। क्या भारत में ब्लॉगिंग स्वांताः सुखाय से आगे बढ़ पाई है। ब्लॉग हिंदी में कई हैं और कई तरह के हैं- बढ़िया, घटिया, पठनीय, लोकप्रिय, नामचीन, तोपचीन… लेकिन कुछ ही ब्लॉग हैं जो इसे वाकई वैकल्पिक मीडिया के हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। जो कर रहे हैं, उनके पास पाठक नहीं हैं और जिनके पास पाठक हैं, वे या तो एक-दूसरे की छिछालेदार कर रहे हैं या फिर एक-दूसरे की पीठ खुजाने का काम। यह अफसोस की ही बात है कि इतना ताकतवर मंच अच्छी शुरुआत करने के बाद भटक सा गया लगता है। ब्लॉग के जरिये गंभीर साहित्यिक परिचर्चाएं  हों, जन-विरोधी नीतियों की खिंचाई हो, सामाजिक मुद्दों पर तीखी बहसें हो, नई-नई जानकारियों व घटनाओं का प्रचार-प्रसार हो, परदे के पीछे के सच उजागर हों, आलोचनाएं हों, स्वागत हों… सब हो, लेकिन कीचड़ न हो, तो कई मंजिलें हासिल की जा सकती हैं। यही वजह है कि भारत के बाहर ब्लॉगिंग ने जो मुकाम हासिल किए हैं, वे भारत में अभी दूर की कौड़ी नजर आते हैं। भारत में ब्लॉग लिखने वालों और पढ़ने वालों का एक ही खेमा है- सब आपस में लिखते-पढ़ते हैं और उसी में संतुष्ट रहते हैं। जरूरत ब्लॉग को उससे आगे ले जाने की है। जाहिर है कि ब्लॉग की पहुंच वहीं तक होगी जहां तक कंप्यूटर और इंटरनेट की होगी, लेकिन ब्लॉगिंग को एक सार्थक मायने की दरकार है। जागरण जंक्शन इसमें कितना कामयाब होगा, यह तो वक्त ही बताएगा… या फिर यूं कहें कि इसके पाठक और ब्लॉगर्स। यह केवल एक ब्लॉग नहीं बल्कि ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म है। ब्लॉगिंग की दुनिया में इस नवप्रवेशु का स्वागत होना ही चाहिए।

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